इश्क में होना : लेखक देवेन्द्र शर्मा
उसको ब्लीच किये हुए उसके बाल लफंगों वाले लगते थे।
उसे क्लास में हर सवाल पे उसका तोते जैसा सब बड़बड़ा देना इरिटेट करता था।
उसे रोज होमवर्क बिना किये आने वाला वो लड़का आवारा लगता था।
वो रोज शाम को मंदिर जाके आरती गाती थी
वो रोज शाम मंदिर के बाहर उससे मिठाई छीन लेता था।
वो उससे नफरत करती थी।
वो उससे नफरत करता था।
वो हर रात सोचता की कब इस गांवनुमा कसबे से पापा का ट्रान्सफर हो जाए।
वो हर रात सोचती की वो उसके स्कूल से नाम कटवा ले।
और उस दिन वो चला गया।
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अब उसे आरती के बाद मिठाई खाना अच्छा नहीं लगता था
अब उसे ये बड़ा शहर भी काटने को दौड़ता था
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आज उसके पोस्टग्रेजुएशन का पहला दिन है
आज उसके पोस्टग्रेजुएशन का पहला दिन है
उसने आज इतने सालों के बाद उसको अचानक देखा। फॉर्मल कपड़ो में वो एकदम करीने से रहने लगा था।
उसने आज इतने सालों बाद भी उसे एक नजर में पहचान लिया था
बरगंडी बालों और स्टाइलिश स्कर्ट में वो एकदम बेपरवाही से मुस्कुरा रही थी।
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शायद उन्हें पता चल गया था ;
वो इश्क में थे ।
इश्क में होना : लेखक देवेन्द्र शर्मा
Reviewed by कहानीकार
on
September 06, 2017
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