कुछ भी नहीं बिन तेरे : लेखक शिल्पी रस्तोगी
जब रक्षित ने शैली को साहिल के साथ रेस्तरां में देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था, कि उससे ब्रेकअप के बाद शैली इतनी जल्दी संभल जाएगी. शैली उसे पहले से ज्यादा खुश और खिली खिली नजर आ रही थी. दोनों के खिलखिलाने की आवाज सुनकर रक्षित ज्यादा देर वहां खड़ा न रह सका. जाने क्यों शैली की खुशी से उसके दिल में एक अजीब सी हलचल मच गई थी. साहिल, रक्षित से देखने में भी कहीं ज्यादा स्मार्ट था. यह देखकर रक्षित को और भी जलन हो रही थी. शैली जैसी सांवली लड़की में इसने क्या देखा जो ऐसा लट्टू हो गया. यह कोई पहली बार नहीं था, जब उसने शैली को साहिल के साथ देखा था, इससे पहले भी दो तीन बार वह उसे देख चुका था. दोनो ही अपनी दुनिया में इतना खोए होते कि आस पास की खबर ही नहीं होती थी. रक्षित चुपचाप वहां से लौट आया. उसके उदास चेहरे को देखकर पिया पूछ बैठी ‘क्या हुआ रक्षित? रेस्तरां में जगह नहीं मिली क्या बैठने की. नहीं पिया... रेस्तरां पूरा फुल था. कहीें और चलते हैं. रक्षित ने चेहरे पर नकली मुस्कान लाते हुए कहा. ओ के, चलो बैठो गाड़ी में कहते हुए, पिया ने गाड़ी स्टार्ट कर दी. फाइव स्टार होटल के सामने पहुंचकर पिया ने गाड़ी रोक दी. ‘‘क्या बात है.. तुम आज कहां खोए हो? पिया ने रक्षित को टोका. फाइव स्टार होटल, मंहगी गाड़ी, वेस्ट्रन ड्रेसिस में सजी उसकी पैसे वाली गर्ल फ्रेंड, यहीं सब तो चाहा था मैंने, जिसके लिए अपनी मासूम शैली को छोड़ दिया था. खुश रखने का वादा करके बेचारी को धोखा दिया. अब जब वह साहिल के साथ खुश है तो अब क्या सोचना. अपने इन विचारो को झटककर रक्षित ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर बार बार शैली की याद आ रही थी. रेस्तरां में कार्नर सीट पर बैठ कर, पिया ने काॅफी का आर्डर दे दिया. ‘यह बताओ तुम मेरे मम्मी पापा से कब मिल रहे हो? पिया ने बड़े प्यार भरे शब्दों में पूछा. पर रक्षित इस समय इस बात का कोई जवाब न दे पाया. अरे पिया... पहले हम तो एक दूसरे को जान लें. रक्षित ने बात को टालते हुए कहा. ‘‘क्यों और कितना जानना है अब तीन महीने से तो हम लगातार एक दूसरे को जान ही रहे हैं. मुझे तो जितना जानना था. तुम्हे जान चुकी. पिया ने हंसते हुए लेकिन तल्ख स्वर में कहा. ‘‘नहीं.. यार थोड़ा सा टाइम तो दो.. मैंने एक बार फिर पिया को समझाने की कोशिश की इस समय मेरा दिल सिर्फ शैली के ही बारे में सोच रहा था. उसके सिवा कोई ख्याल मेरे मन में आ ही नहीं रहा था. चलो पिया बहुत देर हो गई घर चले काफी खत्म करते हुए पिया से कहा. घर ही चलना ठीक है. वैसे भी आज पता नहीं तुम्हारा ध्यान कहा है, पिया ने गम्भीर मुखमुद्रा में ही अपनी बात कही. रेस्तरां का बिल देने के बाद दोनों बाहर निकल आएं. रक्षित को उसके घर ड्राप करते हुए, पिया भी अपने घर पहुंच गई और मन ही मन अपनी सफलता पर खुश हो रही थी. अब पता चलेगा रक्षित को कि किसी का दिल तोड़ना कितना पीड़ादायक होता है. काश उसकी यह टीस इस समय शैली देख पाती. घर पहुंचकर भी रक्षित को चैन नहीं था. रात को सोने की कोशिश की तो शैली का आसुंओं भरा चेहरा सामने आ गया. ‘‘रक्षित मेरी बात तो सुनो मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. तुम जानते थे कि मैं अमीर नहीं हूं. पर मेरे पापा मम्मा ने जितना वह कर सकते थे उतना मेरे लिए किया है. मुझे पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया है, कि हम दोनों मिलकर अपनी जिंदगी आराम से जी सकते हैं. ‘‘ शैली मेरे भी कुछ सपने हैं मैं सिर्फ आराम से ही अपनी जिंदगी नहीं जीना चाहता, बल्कि ऐशोआराम से जीना चाहता हूं... ‘तो यह सब तुम्हें पहले सोचना चाहिए था.. शैली ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा. अब कह तो रहा हूं मेरी जिंदगी से चली जाओ. नहीं जीना चाहता मैं तुम्हारे साथ.. रक्षित ने बेरूखी से कहा.’’ रक्षित प्लीज बात को समझने की कोशिश तो करो... मैंने दिल की गहराइयो से तुम्हे चाहा है. तुम चले गए तो मैं कैसे जिऊंगी.. शैली की आंखें आंसुओं से तर हो चुकी थी. लेकिन रक्षित ने अपनी आंखों पर पैसे का ऐसा चश्मा पहन रखा था. जिससे शैली का प्यार और उसकी तड़प उसे नजर ही नहीं आ रही थी. क्यों जब मैं तुम्हारी जिंदगी में नहीं था तो, क्या तुम जी नहीं रही थी और फिर अब भी जी सकती हो..’’ रक्षित तुम्हे जाना था तो मेरी जिंदगी में आए ही क्यों,..शैली ने कांपती आवाज में पूछा. मुझे ना कुछ कहना है और ना सुनना रक्षित ने जवाब दिया और चला गया. शैली जैसे जड़ सी हो गई खामोश निगाहों से उसे जाते हुए देखती रही. ओह शैली.. पता नहीं कैसे इतना पत्थर दिल हो गया था, मैं.. रक्षित ने अपने आप से कहा. मुझे शैली क्यों आज इतना याद आ रही है. क्या उसे खुश देखकर मुझे जलन का एहसास हो रहा है. आज जब वह साहिल के साथ नए रास्ते पर चल रही है, तो यह बैचेनी यह वेदना कैसी.. जैसे रक्षित ने खुद से ही सवाल किया. अब सोचने से क्या फायदा.. उठकर रक्षित ने पानी पिया और दुबारा सोने की कोशिश की, पर लेटते ही नींद फिर आंखों से गायब हो गई, और दिल फिर से अतीत में भटकने लगा. एक दिन जब रक्षित कालेज से लौटकर आया तो, सामने वाले घर का दरवाजा खुला देखकर थोड़ी हैरेत हुई. तभी मां ने अंदर से आते हुए बताया कि पड़ोस में कोई रहने आ गए हैं. चलो अच्छा है सूनापन तो दूर होगा. चल जल्दी से हाथ मंुह धो लें और खाने खा लें. मां ने वापस किचन में जाते हुए कहा. खाना खाकर अपने कमरे में आया. मौसम कुछ ठंडा हो चुका था, फिर भी मुझे बालकनी में बैठना बचपन से ही बहुत भाता था.. जैसे ही बालकनी में आया में सहसा सामने वाले घर की बालकनी खुली देखकर नजर चली गई तो वहीं उलझकर रह गई. लगभग मेरी ही हमउम्र लड़की वहां गमले सजा रही थी. उसके माथे पर पड़ी लट शायद उसे परेशान कर रही थी और वह उसे बार बार पीछे कर रही थी. वह देखने में बहुत संुदर नहीं थी थोड़ा सांवली थी पर नयन नक्श अच्छे थे, जो किसी को भी अपनी और खींच सकते थे. मैं उसे देख ही रहा था कि उसकी नजर मुझ पर पड़ी, तो मैंने अपना चेहरा घुमा लिया पल भर के लिए ऐसा लगा जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो. अंदर आ गया पर मन अभी भी बाहर ही था. थोड़ी देर में लड़की भी अंदर चली गई. मैं देर तक उसके बारे में सोचता रहा. मैं बचपन से ही कोएड में पढ़ा था पर उस में जाने कैसा आर्कषण था, कि मैं उसकी और खिंचता हुआ महसूस कर रहा था. यहीं सब सोच रहा था... कि मां की आवाज आई... रक्षित जरा नीचे तो आना बेटा.. नीचे आकर देखा तो वहीं बालकनी वाली लड़की एक महिला के साथ बैठी दिखाई दी. जैसे ही नज़रे मिली वह धीरे से मुस्कुरा दी. बेटा यह शर्मा आंटी हैं कल ही पड़ोस में आई हैं. यह इनकी बेटी है शैली और मिसेज शर्मा यह है मेरा बेटा रक्षित. नमस्ते आंटी मैंने पैर छूकर अभिवादन किया तो वह जैसे गदगद हो उठी. आज के जमाने में भी ऐसे संस्कार सच में बहुत अच्छा लगा मिसेज कश्यप. कैसे मां का मुख प्रंशसा से चमक उठा था. पर मैं ....मैंने तो मां के संस्कार को मानो भुला ही दिया है. आज भी याद है मुझे वह दिन, जब पहली बार मैंने शैली के सामने अपना दिल खोल कर रखा था.रक्षित, मेरा हाथ और साथ कभी मत छोड़ना. जी नहीं पाउगीं तुम्हारे बिना. भीगी पलकों से सिर्फ इतना ही बोल पाई थी, शैली. उसकी हर बात जैसे दिल में नश्तर चुभो रही थी. पूरी रात रक्षित सो नहीं सका था. मैं पिया को सब सच बता दूंगाा कि शैली मेरी दोस्त ही नहीं थी मेरी जिंदगी भी है. हां, नहीं जी सकता मैं उसके बिना. कैसे भी करके मुझे मेरा प्यार पाना ही है. ऐसे मैं उसे नहीं खो सकता. अपने आप से वादा कर रक्षित ने पिया को फोन कर मिलने बुलाया. वह सिर्फ मेरी अच्छी दोस्त नहीं बल्कि कभी मेरी जिंदगी थी. फिर अचानक तुम मिली तो मुझे अपने सपने सच होते हुए लगे और मैंने तुमसे नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी. मुझे लगा तुम सफलता का शार्टकट हो... बस मैंने शैली से किनारा करना शुरू कर दिया. रक्षित बिना किसी भूमिका के बोल रहा था. पिया खामोश बैठे सब सुन रही थी. रक्षित इस समय मैं किसी बात का जवाब नहीं दे सकती कहकर पिया उठकर चली गई. घर गया तो पता चला शैली मुबंई जा रही है. शैली मैं तुमसे मिलना चाहता हूं जाने कैसे शैली को काॅल कर बैठा. ‘‘लेकिन मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी रक्षित.. और हां, प्लीज मुझे फोन मत करना कभी, मैं अपनी जिंदगी में खुश हूं. साहिल तुमसे लाख गुना अच्छा ही नहीं बल्कि मुझसे बेहद प्यार भी करता है और हां उसे हमारे बारे में भी सब कुछ पता है. बेहतर होगा अब आइंदा मुझे फोन मत करना. ‘अब कहने सुनने के लिए बचा ही क्या है. तुम्हें पैसे वाली जिंदगी मुबारक हो... शैली प्लीज, एक बार.. सिर्फ एक बार मैं तुमसे मिलना चाहता हूं. ‘लेकिन मुझे तुम में और तुम्हारी बातों में अब कोई दिलचस्पी नहीं है...’ शैली ने बेरूखी से जवाब दिया.. ‘शैली.. एक बार सुनो तो इतनी कठोर न बनो.’ रक्षित तुम मुझसे बात करने का हक खो चुके हो.. इतना कहकर शैली ने फोन रख दिया. ‘‘ठीक ही तो है मैंने भी तो ऐसा ही किया है उसके साथ, रक्षित ने अपने आप से कहा. शैली उससे बिना मिले ही मुंबई के लिए रवाना हो गई. साॅरी रक्षित, पर तुम्हें अपने प्यार का एहसास करवाने के लिए यह सब करना भी जरूरी है. शैली अपने डांस कम्पीटिशन में पहले स्थान पर रही. जिससे उसके सपनों को नई राह मिल गई थी. मुझे पता नहीं क्या हो गया था कि दिल हर वक्त उदासी से भरा रहने लगा. पिया मुझसे मिलती रहती थी. मेरा ध्यान बंटाने की कोशिश करती फिर भी मेरा दिल और दिमाग दोनो ही अंशात रहने लगा था. पिया ने भी अब लगभग शादी की बात करनी बंद कर दी थी. जाॅब में मुझे प्रमोशन मिल चुका था. पर जिंदगी में कोई रंग नहीं बचा था. जाने क्यों मैं उसे भूल ही नहीं पा रहा था. जिसे झटके से छोड़ आया था वह दिल दिमाग पर इतनी हावी है. इसका एहसास ही नहीं था. एक दिन पिया से ही पता चला कि साहिल और शैली जल्द ही विवाह के बंधन में बंधने वाले हैं. फिर दोनों मुंबई ही सेटल हो जाएंगे. इस खबर ने मुझे बिल्कुल ही तोड़ डाला था. अब कहीं कोई उम्मीद की किरन नहीं बची थी. पिया अब भी मुझसे मिलती थी. पिया, क्या मेरा कसूर अक्षम्य था, जो शैली मुझे एक मौका भी न दे सकी. मेरे लिए अपनी जान देने की बात करने वाली लड़की मात्र ब्रेकअप के 15 दिन बाद ही उस साहिल के इतनी करीब हो गई कि मेरे लिए उसके जज्ब़ात कुछ भी न रहे. ‘गलती तुम्हारी है रक्षित, जो तुमने अपने प्यार को छोड़ा और अब वफा की उम्मीद कर रहे हो. जब तुमने उसे छोड़ा था तो यहीं सोचा होगा कि रोएगी और अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाएगी. क्यों यहीं सब विचार तुम्हारे मन में होगें. लेकिन उसे साहिल के साथ देखकर तुम्हारी धारणा ही बदल गई. कैसे तुमसे अलग होकर वह खुश है. इससे तुम्हारी इगो हर्ट हुई, क्योंकि हम लड़कियों की तो स्थिति हमेशा बेचारी वाली होती है. जब चाहे जैसे चाहे नचा लिया. क्यों मिस्टर रक्षित, सही बोल रही हूं ना मैं, पिया के यूं बदले तेवर देखकर रक्षित सकपका गया, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. अब भी तुम शैली से प्यार करते हो या सच्चाई कुछ और है. यह भी अच्छी तरह तुम ही जानते हो. पिया प्लीज, मुझे अपनी गलती समझ आ चुकी है. मेरे प्यार पर अब और इल्जाम न लगाओ. रक्षित जैसे तड़प उठा था. रक्षित की अंाखों में पिया को सच्चाई और शैली के लिए अथाह प्यार नज़र आ रहा था. अब सही वक्त आ चुका है. मन ही मन पिया मुस्कुराई. ठीक है रक्षित मैं अब चलती हूं. थके मन से रक्षित भी घर पहुंच चुका था. इतने में ही उसका फोन घनघना उठा. हैलो, रक्षित कैसे हो? फोन पर शैली थी उसकी आवाज़ सुनकर रक्षित खिल उठा था. रक्षित, परसों मेरी सगाई है.किसी को भी नहीं बुलाया है लेकिन मैं चाहती हूं, कि तुम आओ, एड्रेस मैं मैसेज करती हूं, और प्लीज इसके बारे में अभी आंटी अंकल को भी कुछ मत बताना. तुम आओगे ना. मैं इंतजार करूगी. इतना कहकर शैली ने फोन रख दिया. अपनी सगाई में मुझे क्यों बुला रही है शैली, पर चाहे जो भी हो अगर इससे उसे खुशी होगी तो मैं जरूर जाउंगा. इतने में ही पिया का फोन आ गया. रक्षित मेरे पास अभी शैली का फोन आया था उसकी सगाई के लिए. क्या करू? मुझे भी बुलाया है रक्षित ने कहा. अच्छा तो क्या सोच रहे हो जाओगे? पिया ने पूछा. हां, पिया जाना तो है ही. अगले दिन दोनों फ्लाइट पकड़ कर मुंबई पहुंच गए. शैली के बताए पते पर जब पहुंचे तो रक्षित हैरानी से भर उठा. वहां सिवा साहिल के कोई नहीं था. ले संभाल अपना दूल्हा हंसते हुए पिया ने शैली के गले लगते हुए कहा. यह सब क्या गोल माल है. रक्षित अभी भी भौचक नज़र आ रहा था. तुझसे कहा था ना कि तेरी एक आवाज पर दौड़ा चला आयेगा. निभा दिया ना अपना वादा पिया खिलखिला रही था. अब तुझे भी अपना वादा निभाना होगा कि हमेशा खुश रहेगी. रक्षित, ज्यादा हैरान होने की जरूरत नहीं है. तुम्हारा शैली से अलग होना तुम्हारा निर्णय था और तुम्हारी भूल का तुम्हें एहसास कराना हमारा प्लान. ‘तो क्या तुम पहले से ही सब जानती थी. रक्षित ने हैरानी से पूछा. जी, सब कुछ षैली के ही प्लान से हो रहा था. बस शैली का प्रतियोगिता जीतना और मंुबई आना सिर्फ उसकी किस्मत और मेहनत से हुआ है. प्लान में साहिल ने हमारा साथ दिया. मेरा और तुम्हारा मिलना भी सिर्फ नाटक का ही हिस्सा था. क्योंकि जहां तक मैं तुम्हे जानती थी, तुम ऊपरी चमक दमक में बहक रहे थे. इसीलिए सही रास्ते पर लाना बहुत जरूरी था. अरे कोई यह तो पूछो कि रक्षित को इस ड्रामे का एंड पसंद आया या नहीं वरना, नायिका सच में ही किसी और की ना हो जाए, शरारतीपन से साहिल ने कहा. ना ना ऐसा गज़ब मत करना, कहते हुए रक्षित ने शैली का हाथ थाम लिया. क्यों? डायरेक्टर साहिबा इजाज़त है. सभी सम्मिलित सुर में हंस रहें थें.
कुछ भी नहीं बिन तेरे : लेखक शिल्पी रस्तोगी
Reviewed by कहानीकार
on
September 06, 2017
Rating:

No comments