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इज़हार से इंतज़ार तक... : लेखक शिप्रा मिश्रा



कल से ऋषि की नयी क्लासेज शुरू हो रही है उसके लिए नयी किताबें लानी है….वेदिका अपने पति आदित्य से बताते हुए…. तुमसे कितनी बार कहना पड़ेगा की ये छोटे छोटे काम तुम खुद कर लिया करो इनसब के लिए मेरे पास वक़्त नहीं है….मुझे और भी काम है….आदित्य ने जवाब दिया.
इतना सुनते ही वेदिका चुप हो गयी क्यूंकि वो आदित्य के स्वाभाव को अच्छे से जानती थी की अगर उसने एक शब्द भी और कहा तो आदित्य चीढ़ जायेगा और फिर पूरा घर सर पर उठा लेगा…इसीलिए उसने खुद ही अकेले ऋषि के लिए शॉपिंग करने की सोच ली….
अगला दिन
मम्मी मुझे वो आइस क्रीम खानी है…बुक स्टोर के पास एक आइस क्रीम पार्लर को देख कर ऋषि ज़िद करने लगा….रुको बेटा बस किताबें खरीद लें फिर चलते है….वेदिका ने ऋषि को प्यार से समझाया….
पर ऋषि से इंतज़ार नहीं हुआ और वो अपनी मम्मी को बिना बताए ही आइस क्रीम पार्लर चला गया….थोड़ी देर में जब वेदिका का ध्यान ऋषि पर पड़ा तो वो उसे वहां नहीं मिला,वो उसे ढूंढ़ने लगी फिर उसे लगा की वो पक्का आइस क्रीम पार्लर चला गया होगा, उसने आइस क्रीम पार्लर में जाकर देखा तो वो वहां भी नहीं था वो और डर गयी और इधर उधर उसे ढूंढ़ने लगी, लोगों से उसके बारे में पूछने लगी पर किसी को कुछ पता नहीं….
फिर एक बैलून वाले के पास उसे उसका बेटा मिला वो रोते रोते किसी से बात कर रहा था और तुरंत वहां पहुंची और ऋषि को गले लगाते हुए रोने लगी…
एक्सक्यूज़ मी….आप कहा थी आपका बेटा कह रहा था की वो खो गया है और…….वेदिका के मुड़ते ही (थोड़े से सन्नाटे के बाद) वेदिका!!!!! तुम
कार्तिक!!!!! तुम यहाँ…..कितने सालों बाद तुम्हे देख रही हूँ कितना बदल गए हो तुम….
(थोड़ी दबी आवाज़ में) हाँ…..तुम ही ने तो कहा था कि दोबारा अपनी शकल मत दिखाना…खैर साडी में पहली बार देख रहा हूँ तुमको बहुत अच्छी लग रही हो…और ये तुम्हारा बेटा बहुत प्यारा है….ये तो डरा हुआ था की इसकी मम्मी खो गयी है फिर मैंने देखा तो बस इसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था…
थैंक्यू कार्तिक….मेरे बेटे का ख्याल रखने के लिए, वरना मैं तो डर ही गयी थी….
मम्मी आप इन अंकल को जानती हो….ये आपके कौन हैं…(ऋषि ने उत्सुकता दिखाते हुए पुछा)...बेटा जैसे स्कूल में आपके दोस्त है न वैसे ही ये अंकल मेरे दोस्त हैं….(वेदिका ने समझाते हुए कहा)
अच्छा आप मेरी मम्मी के दोस्त हो तो आप मेरे दोस्त अंकल हुए….मम्मी जैसे मेरे दोस्त घर आते हैं और आप उन्हें अच्छा अच्छा बना के खिलाती हो वैसे ही दोस्त अंकल को भी घर लेके चलो, मैं अपने टॉयज भी दिखाऊंगा अंकल को….प्लीज मम्मी प्लीज….
आज नहीं बेटा फिर कभी आऊंगा और आपके टॉयज के साथ खूब खेलूँगा….(कार्तिक ने ऋषि को समझाया)…और इतना कह कर दोनों अपने रास्ते हो लिए….
उसी रात को….
इतने सालों बाद कार्तिक से मिलकर वेदिका बहुत बेचैन थी उसे नींद नहीं आ रही थी, उन्हीं ख्यालों में खोए वो 7 साल पीछे चली गयी…..
7 साल पहले…..
कार्तिक और वेदिका एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और पूरा कॉलेज इस बात को जानता था कि कॉलेज के पहले दिन से ही कार्तिक वेदिका को बहुत चाहता है, पर वेदिका अपने सपनो को पूरा करना चाहती है इसलिए वो प्यार व्यार से दूर ही रहना चाहती थी…..कार्तिक वेदिका को इतना चाहता था की उसकी ना भी उसे मंज़ूर थी बल्कि वो खुद वेदिका को हमेशा खुश रखने की कोशिश करता, उसकी हर इक्क्षा पूरी हो ऐसी हमेशा कोशिश करता…..
ये बात तो वेदिका भी बहुत अच्छे से जानती थी कि कार्तिक उससे कितना प्यार करता है फिर भी उसे कार्तिक की एक बात अच्छी लगी की उसके मना करने पर भी कार्तिक ने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की और न कभी कुछ ऐसा किया जिससे उनकी दोस्ती पर असर पड़े और वेदिका को शर्मिंदा होना पड़े….इसी वजह से प्यार होकर भी उनकी दोस्ती बरकरार रही….
यूँ तो कार्तिक का स्वभाव ही ऐसा था वो हमेशा से दूसरों के बारे में ज्यादा सोचता था और बदले में उसे कुछ न मिले तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था…. कार्तिक के इसी स्वभाव की वजह से हज़ारों लड़कियां उसपर मरती थी पर कार्तिक के दिल की धड़कन सिर्फ वेदिका के लिए धड़कती थी….
वो ज़िन्दगी के सुनहरे पल थे जो बीत रहे थे और वक़्त के साथ वेदिका भी मन ही मन कार्तिक से प्यार करने लगी थी पर उसका स्वभाव कार्तिक से बहुत अलग था वो अपने मन की बात मन में ही रख लेती थी….तभी अचानक एक दिन वेदिका के घर से फ़ोन आया की उसके पिताजी की हार्ट अटैक से मौत हो गयी और उसे तुरंत ही अपने घर के लिए निकलना पड़ा…..
अपने पिता की मौत से वो आधी तो टूटी ही थी की उसे पता चला की उसके पिता के ऊपर व्यापार में नुकसान होने की वजह से बहुत क़र्ज़ा था….जो वो चुकाने लायक नहीं रह गए थे और उसे ये भी पता चला कि अपने काम को बचाने के लिए उन्होंने वेदिका की शादी एक सेठ के बेटे के साथ तय कर दी और तो और ये शादी के दम पर उन्होंने उस सेठ से लाखों का कर्जा भी लिया था….
ये सब जानने के बाद वेदिका में सैलाब उठ रहा था उसे समझ ही नहीं आ रहा था की वो क्या करे…कहाँ जाये, एक तरफ उसका परिवार था तो एक तरफ उसका प्यार वो किसे चुने….
आमतौर पर वेदिका जैसी लड़कियां अपने परिवार को ही चुनती है इसलिए उसने भी ऐसा ही किया पर उसने इस बारे में कार्तिक से बात भी नहीं की….उधर कॉलेज में इतने दिनों तक वेदिका के न लौटने पर कार्तिक बेचैन था कि कहीं उसे कुछ हुआ तो नहीं…इसलिए वो निकल गया वेदिका से मिलने उसके घर…
वहां जाकर उसे पता चला की वेदिका की तो शादी हो रही है वो परेशान हो गया और सीधे वेदिका से मिलने गया क्यूंकि उसे पूरा भरोसा था की वेदिका भी उसे प्यार करती है और उसके सपने पूरे होते ही वो दोनों शादी भी कर लेंगे…. पर वेदिका के सपने पूरे भी नहीं हुए और वो शादी कर रही है…ज़रूर कोई बात है…
वेदिका से मिलकर जब वो ये सारी बातें जानना चाहता था तो वेदिका ने उसे झटकार कहा “तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो…..तुम मुझसे प्यार करते हो पर मैं नहीं….क्या मैंने कभी तुमसे कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ…तुमने कुछ भी सोचा ये तुम्हारी प्रॉब्लम है और हाँ मैं ये शादी अपनी मर्ज़ी से कर रही हूँ तो तुम्हे बीच में बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम सिर्फ मेरे दोस्त हो और प्लीज मेरा पीछा छोड़ दो बार बार मेरे लिए महान बनने की कोशिश मत करो…. और अगर सच में मुझसे प्यार करते हो तो दोबारा अपनी शकल मत दिखाना मुझे….” इतना कहकर वेदिका वहाँ से चली गयी…..
फिर कार्तिक की ज़िन्दगी में क्या हुआ और इतने सालों बाद उन दोनों का फिर से यूँ अचानक मिलना क्या उनकी ज़िन्दगी में कोई नया मोड़ आएगा या ये सिर्फ एक इत्तेफ़ाक़ बन कर रह जायेगा….आगे की कहानी अगले भाग में प्रकाशित की जायेगी….साथ ही अपने विचार भी बताइए कि कार्तिक को इन हालातों में क्या करना चाहिए था….
इज़हार से इंतज़ार तक... : लेखक शिप्रा मिश्रा इज़हार से इंतज़ार तक... : लेखक  शिप्रा मिश्रा Reviewed by कहानीकार on September 06, 2017 Rating: 5

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