एक थी लक्खी : लेखक रंजना जायसवाल
एक थी लक्खी |पता नहीं उसका असली नाम क्या था ,पर सब उसे लक्खी ही कहते थे |लक्खी यानी लाख के मूल्य वाली |वह एक प्रसिद्ध वेश्या थी ,जिसकी एक रात की कीमत एक लाख थी |बात बहुत पुरानी है जब टका सेर भाजी टका सेर खाजा मिलता था |तो अनुमान लगाया जा सकता था उस समय के लाख का मायने क्या होगा ?लक्खी की कहानी मैंने माँ से सुनी थी |हो सकता है माँ ने नानी से सुनी हो |और नानी ने अपनी माँ से |लक्खी किसी लोककथा की कोई पात्र हो सकती है या किसी की कल्पना भी |कहानी का उद्देश्य यह बताया जाता था कि भाग्य से ही सब कुछ होता है ,पर मुझे इस कहानी में भाग्य से अधिक कुछ दिखता है |देखिए क्या आपको भी कुछ दिखता है ?
तो कहानी को आगे बढ़ाते हैं |
लक्खी बहुत सुंदर थी |हँसती तो फूल झरते ...रोती तो मोती|वह राजकुमारी-सी लगती थी |लगना क्या ?कहते हैं जन्म से वह राजकुमारी ही थी, फिर वह वेश्या कैसे बन गयी ?इसकी भी एक कहानी है |
लक्खी के पिता बहुत बड़े राजा थे ,इसलिए उसके प्रथम जन्मदिवस का उत्सव भी बहुत बड़ा था |उसी में एक ज्योतिष आया | राजा ने उससे बेटी का भाग्य पूछा |ज्योतिष ने गणना की और घबरा गया |उसने राजा से प्रार्थना की –महाराज कृपया यह न पूछें |पर राजा नहीं माना तो ज्योतिष ने अपनी जान बख्शने की शर्त पर राजकुमारी का भाग्य बताना स्वीकार किया |राजा के स्वीकार करने पर ज्योतिष ने बताया कि तुम्हारी बेटी एक दिन प्रसिद्ध वेश्या बनेगी |अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि राजा ने तलवार खींच ली| पर वचन दे चुका था ,इसलिए उसे देश निकाला दे दिया |
दिन महीने में ...महीने वर्ष में बदले |राजकुमारी दस वर्ष की हो गयी |सभी ज्योतिष की भविष्यवाणी भूल चुके थे |पर जब राजकुमारी के ग्यारहवाँ जन्मोत्सव मनाया जाने वाला था |बड़ा जलजला आया और राजमहल मलबा बन गया |कोई न बचा सिवाय राजकुमारी के |वह भाग्य की बली निकली |उस समय वह अपने उपवन में फूल चुन रही थी |
वह तो बच गयी पर उसकी इज्जत नहीं बची |पेट के लिए वह चवन्नी अठन्नी के मोल बिकने लगी |मैली-कुचैली ,दीन -भिखारिन सी दिखती राजकुमारी महल के खंडहरों में रहती और उस मार्ग से गुजरने वाले पथिकों का मन बहलाती |चार वर्ष बाद जलजले की खबर पाकर ज्योतिष लौटे |उन्होंने राजकुमारी को ढूँढा और जब वह मिली तो उसे देखकर दुखी हो गए |उन्होंने उसे नयी साड़ी ,साबुन और तेल दिया और कहा –जाकर पास की नदी में अच्छी तरह नहाकर और तैयार होकर आओ |राजकुमारी जब लौटी तो सोने सी दमक रही थी |ज्योतिष ने कहा—बेटी तुम्हारे भाग्य में वेश्या बनना लिखा था |प्रतिदिन एक ग्राहक तुम्हारे पास अवश्य ही आएगा, तो आज से तुम अपना मूल्य बढ़ाना शुरू करो |आज दो रूपए से कम में मत मानना |कल चार फिर प्रतिदिन बढ़ती जाना |साथ ही अपना रूप-रंग निखारती जाना | एक दिन तुम्हारा भाग्य बदलेगा |तुम किसी देश की रानी बनोगी |
राजकुमारी ने वैसा ही किया |शीघ्र ही उसके रूप के चर्चे चतुर्दिक होने लगे |दूर-दूर से धनाढ्य व राजकुमार उसके पास आने लगे |अब उसंका अपना महल था |दास-दासियाँ थीं | वह एक रात का एक लाख लेती थी |वह राजकुमारी सा जीवन जी रही थी,पर वह मन ही मन इस व्यवसाय से दुखी रहती थी |
एक दिन एक राजकुमार उसके पास आया और उसके रूप और गुणों पर इस कदर रिझा कि उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया |उसका अतीत जानते हुए भी उसने उसे खुशी से अपनाया |
लक्खी अब लालमनि थी |उसने अपने अंत समय तक रानी के रूप में राज्य किया |उसके सौंदर्य,उदारता और कुशल प्रशासन के चर्चे दूर-दूर तक होते थे |किसी को इससे फर्क नहीं पड़ा था कि एक दिन वह लक्खी वेश्या थी |
एक थी लक्खी |पता नहीं उसका असली नाम क्या था ,पर सब उसे लक्खी ही कहते थे |लक्खी यानी लाख के मूल्य वाली |वह एक प्रसिद्ध वेश्या थी ,जिसकी एक रात की कीमत एक लाख थी |बात बहुत पुरानी है जब टका सेर भाजी टका सेर खाजा मिलता था |तो अनुमान लगाया जा सकता था उस समय के लाख का मायने क्या होगा ?लक्खी की कहानी मैंने माँ से सुनी थी |हो सकता है माँ ने नानी से सुनी हो |और नानी ने अपनी माँ से |लक्खी किसी लोककथा की कोई पात्र हो सकती है या किसी की कल्पना भी |कहानी का उद्देश्य यह बताया जाता था कि भाग्य से ही सब कुछ होता है ,पर मुझे इस कहानी में भाग्य से अधिक कुछ दिखता है |देखिए क्या आपको भी कुछ दिखता है ?
एक थी लक्खी : लेखक रंजना जायसवाल
Reviewed by कहानीकार
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September 05, 2017
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