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मोगरा : लेखक वीणा वत्सल सिंह



देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक संस्थान इसरो आज नई ऊर्जा से भर उठा था | एक साथ तीन युवा वैज्ञानिक वहाँ ज्वाइन करने आये थे और वे सभी एक विशेष प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करने वाले थे | सेलेक्शन तो हुआ था चार का देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालय से ; लेकिन आज तीन ही आये थे | चौथी वैज्ञानिक दो दिनों के बाद ज्वाइन करने वाली थी | सभी वरिष्ठ वैज्ञानिक अति उत्साहित थे प्रोजेक्ट के साथ - साथ इन जीनियस चार युवाओं के चयन से - सर्वदमन , पियूष ,सारंग और मोगरा |
इन चारों में सर्वदमन सबसे अधिक जीनियस था | अत: उसे ही प्रोजेक्ट का लीडर बनाया गया | इस विशेष प्रोजेक्ट के लिए एक अलग लैब की व्यवस्था की गई थी ,जिसमें बैठकर उन चारों को काम करना था | आते ही ,पहले दिन से ही प्रोजेक्ट इंचार्ज प्रोफ़ेसर दिवाकर ने उन्हें प्रोजेक्ट की रुपरेखा समझाकर काम शुरू करने का आदेश दे दिया | सर्वदमन ने प्रोजेक्ट के कामों के चार हिस्से किये और पियूष तथा सारंग को उनका काम दे दिया | जबकि , मोगरा के लिए उसने जो काम निर्धारित किये थे उसे एक फाइल में लगा कर अपने अपोजिट कोने में पड़ी खाली कुर्सी के सामने टेबल पर रख दिया |
दो दिनों बाद मोगरा ने इसरो कैम्पस में कदम रखा | मोगरा सच में मोगरा की तरह ही ख़ूबसूरत और खुशमिजाज लड़की थी | जो भी उसकी संगत में आता वह कुछ पल को सब कुछ भूलकर उसके रंग में रंग जाता | मोगरा ने प्रोफ़ेसर दिवाकर के साथ जैसे ही लैब में प्रवेश किया तीनो युवा वैज्ञानिक हक्के - बक्के से रह गए | जब प्रोफ़ेसर दिवाकर ने मोगरा का परिचय उनके साथ के चौथे वैज्ञानिक के रूप में कराया तो वे तीनों ही आश्चर्य के सागर में डूब गए | वह उनकी कल्पनाओं से कहीं अधिक ख़ूबसूरत थी | पियूष ने तो दबे स्वर में सारंग से कहा भी - " यार मैं तो सोच रहा था आज कोई चश्मिश पढ़ाकू मोहतरमा आएँगी लेकिन ये तो होश उड़ाने वाली हैं |"
जवाब में सारंग भी एक आँख दबाकर मुस्कुरा दिया | मोगरा ने सबसे हाथ मिलाते हुए उनका परिचय अत्यंत ही शालीनता से लिया | फिर , प्रोफ़ेसर दिवाकर से मुखातिब हो बोली - " धन्यवाद सर | और , अब मैं समझती हूँ मुझे अपना काम शुरू कर देना चाहिए |"
" यस मोगरा | तुम अब तक हुए काम के बारे में सर्वदमन से पूछ लो | उसने तुम्हारे लिए कौन से काम निर्धारित किये हैं यह भी जान लो | सर्वदमन तुम्हारे ग्रुप का लीडर है |" - यह कह प्रोफ़ेसर दिवाकर लैब से चले गए |
सर्वदमन ने मोगरा को संक्षेप में काम बताते हुए खली कुर्सी की तरफ इशारा कर कहा - + उस चेयर के सामने तुम्हारे काम की फाइल राखी है तुम स्टडी कर लो और हाँ , वहीँ बैठकर तुम काम करना | यहाँ सबकी सीट फिक्स है |"
मोगरा ने " हाँ " कहते हुए अपना सर हिलाया |
मोगरा को आये हुए आज चार दिन हो गए थे | वह पियूष और सारंग से तो काम के दरम्यान खूब सारी बातें करती लेकिन सर्वदमन से कोई भी बात कर पाना उसके लिए क्या पियूष और सारंग के लिए भी मुश्किल था | मोगरा के आने के एक दिन के बाद ही सर्वदमन ने एक अजीब किस्म का यंत्र बनाया था ,जो उसके सामने पड़ा रहता था और उसने उस यंत्र के बगल में एक छोटी सी नोटिस टेबल पर फिक्स कर दी थी - " प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी |"
सर्वदमन के खडूस और गंभीर व्यवहार के कारण कोई उससे जल्दी बात भी नहीं करता | यहाँ तक कि , कभी जब वे चाय या कॉफ़ी पीने के लिए जा रहे होते तब भी जल्दी कोई सर्वदमन से साथ चलने को नहीं कहता - इस डर से कि कहीं वह झिडक न दे | सर्वदमन का काम के प्रति समर्पण इसरो में मिथक बनता जा रहा था | वह पूरे दिन उस स्पेशल यंत्र में जाने क्या नजरें गडाए देखता रहता और फिर फाइल में कुछ न कुछ लिखता रहता |
मोगरा जब कभी काम के समय किसी बात पर खिलखिला उठती तो सर्वदमन उसे ऐसी नज़रों से देखता मानो उसने खिलखिलाने की जगह किसी का मर्डर कर दिया है |पियूष और सारंग भी सर्वदमन के ऐसे व्यवहार के कारण उससे नाखुश से ही रहते | जैसे - जैसे प्रोजेक्ट का काम आगे बढ़ता गया मोगरा को पाने की ललक पियूष और सारंग - दोनों में समान रूप से बढती गई | दोनों ही प्रोजेक्ट के काम के बाद अक्सर भिन्न - भिन्न बहानों से मोगरा के करीब रहना चाहने लगे | प्रोफ़ेसर दिवाकर सर्वदमन के काम से काफी खुश थे और अक्सर अन्य तीनों के काम की रिपोर्ट सर्वदमन से लिया करते थे | सर्वदमन पियूष और सारंग की रिपोर्ट तो विस्तार से दे देता लेकिन जब मोगरा के बारे में पूछा जाता तो वह किसी न किसी बहाने कन्नी कटा जता | प्रोफ़ेसर दिवाकर इस बात को एक झेंपू लड़के का बिहैवियर मान अधिक पड़ताल नहीं करते थे |
समय बीतता गया मोगरा लैब से निकलने के बाद अब कोई शाम पियूष तो कोई शाम सारंग के साथ बिताने लगी |उसे भी उन दोनों में से किसी एक को अपना जीवन साथी चुन लेने की इच्छा होने लगी |
वह शरद पूर्णिमा की रात थी | मोगरा ने आज झक सफ़ेद रंग की नेट की साडी पहन राखी थी ; जिस पर सुनहले महीन तार से हलकी कढ़ाई की गई थी | बालों को समेटकर ऊपर उठा उसने जूडा बना उस में सुन्दर सफ़ेद फूल लगा रखे थे | कानों में सफेद मोती के साथ लटका दहकता मूंगा उसके पूरे व्यक्तित्व को मायावी बना रहा था | वह आज पियूष और सारंग के साथ एक ओपन एयर रेस्टुरेंट में डिनर के लिए आई हुई थी | मोगरा के इस रूप को देख सारंग से रहा नहीं गया और उसने कहा - " मोगरा ,इस खिली चांदनी में आज तुम बिलकुल परियों सी लग रही हो | ऐसा लग रहा है जैसे किसी और ही दुनिया से आई हो |"
पियूष की मुग्ध दृष्टि ने सारंग की बातों का समर्थन किया | खाना खाते हुए पियूष और सारंग - दोनों ने ही मोगरा से साफ़ - साफ़ उसकी पसंद बताने को कहा | मोगरा इस बात के लिए तैयार नहीं थी | उसने सोचने के लिए दो दिनों का समय माँगा |
अगले दिन प्रोफ़ेसर दिवाकर ने पियूष और सारंग को अपने साथ एक दूसरे काम के लिए बुला लिया |
सारंग ने जाते हुए मोगरा को उसके निर्णय कर लेने की बात याद दिलाई | जब लैब में सर्वदमन और मोगरा रह गए तो काम करते हुए अचानक सर्वदमन ने पूछा - " सारंग कौन से निर्णय लेने की बात तुमसे कह गया ?"
" नहीं कुछ ख़ास नहीं ,वह पर्सनल बात है | काम से रिलेटेड नहीं |" - मोगरा का स्वर आशंकित था |
" क्या तुम मुझसे डरती हो ?"
"मैं ही नहीं , हम तीनों तुम से खौफ खाते हैं | तुम हो ही इतने खडूस |"
" ओके | क्या तुम मेरे काम के बारे में कुछ जानना चाहोगी ?"
" नहीं , कुछ ख़ास नहीं |बस अपने इस डिवाईस के बारे में बता दो ; जिसमें तुम पूरे दिन आँखें गडाए रहते हो |मैं अपना पूरा दिमाग लगाकर भी इसकी अहमियत प्रोजेक्ट में नहीं जान पाई |"
" ह्म्म्म तुम इस डिवाईस के बारे में जानना चाहती हो तो एक काम करो तुम मेरी सीट पर आकर बैठ जाओ और खुद ही मेरी तरह इसमें आँखें गड़ाकर देखो |"
इतना कह सर्वदमन अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और जाकर मोगरा की सीट पर बैठ गया |
मोगरा ने डिवाईस में आँखें गड़ाकर देखा | बार - बार देखा और अचानक उसकी आँखों से आँसू बह निकले | सर्वदमन ने उठकर हलके से उसके आंसू पोंछ कहा - " क्या तुम्हें इसमें देखकर दुःख हुआ ?"
"नहीं सर्वदमन , क्या सच में तुम ?"
सर्वदमन ने जवाब में मुस्कुराकर हलके से 'हाँ ' कहा |
अभी ये बातें हो ही रही थीं कि पियूष और सारंग वापस आ गए | लैब का माहौल उन्हें कुछ अजीब सा लगा | हमेशा काम में डूबा रहने वाला सर्वदमन टेबल पर एक हाथ टिका खड़ा था और मोगरा उसकी चेयर पर बैठी थी | दोनों से रहा नहीं गया | दोनों ने मोगरा को मुखातिब हो एकस्वर में पूछा - " क्या हुआ ?"
" फैसला |"
"क्या मतलब ?" - सारंग के स्वर में उतावलापन था |
" हाँ ,सारंग फैसला | तुम भी इस डिवाईस में आकर देखो | मेरा फैसला तुम्हे यह डिवाईस बता देगी |" - इतना कह मोगरा जाकर अपनी सीट पर बैठ गई |
सारंग कुछ सेकेण्ड डिवाईस में आँखें गड़ाकर देखने के बाद ख़ुशी और दुःख मिले स्वर में बोल पडा - " सच में मोगरा | फैसला सही और बहुत सही है |"
पियूष की उतावली नजरें नजरें सारंग पर गड गईं | जिसे देख सारंग ने कहना शुरू किया - " पियूष ,हमारे प्यार से कहीं अधिक गहरा प्यार सर्वदमन का है |"
" क्या कह रहे तुम ?"
" हाँ यार , यह डिवाईस इस बात का गवाह है |"
"पहेलियाँ मत बुझाओ सारंग ,साफ़ - साफ़ बताओ क्या बात है ?"
" पियूष इस डिवाईस में बाहर और अन्दर मिरर कुछ इस एंगल पर फिक्स किये हुए हैं कि इसमें देखने पर उधर अपोजिट कोने में बैठी मोगरा दिखाई देती है | केवल मोगरा | और कोई नहीं ,कुछ नहीं |"
"क्या ?????? पियूष का स्वर प्रश्न और आश्चर्य से भरा हुआ था | "यानी सर्वदमन पूरे दिन केवल और केवल मोगरा को ही देखता रहता है |"
"हाँ पियूष ,और साथ में हम सबसे अधिक काम भी करता रहा है |"
अब तक चुपचाप खड़ा रहा सर्वदमन बोल उठा - " मैं काम नहीं करता रहा | मेरा प्रेम ,मेरी मोगरा मुझसे काम करवाती रही |"
सर्वदमन के इस वाक्य को सुनते ही मोगरा के गाल कानों तक सूर्ख हो गए |

मोगरा : लेखक वीणा वत्सल सिंह मोगरा  :  लेखक  वीणा वत्सल सिंह Reviewed by कहानीकार on September 06, 2017 Rating: 5

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