कल और आज : लेखक अग्यात
उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था।
जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएं सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया।
बूढ़े मां-बाप बड़े दुखी हुए। चारों ओर शोक छा गया।
जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुंचे तो रोने-पीटने की आवाज सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया।
पहले तो वह खूब जोर से रोया, फिर खूब हंसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया।
लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए।
वह लड़का वही तपस्या करने लगा।इतना कहकर वेताल बोला, ‘राजन्, यह बताओ कि यह योगी पहले क्यों तो रोया, फिर क्यों हंसा?’
राजा ने कहा, ‘इसमें क्या बात है! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके मां-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएं प्राप्त कीं, उसे छोड़ रहा था।
हंसा इसलिए कि वह नए शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियां प्राप्त कर सकेगा।’
बोध :
बिक्रम बैताल की यह कहानी है बहुत छोटी और रसप्रद भी शायद न हो लेकिन यह कहानी हमें बहुत कुछ कह जाती है , हर आने वाला बदलाव एक नयी शुरुआत है. जो बिछड़ चूका है, जा चूका है उसपर गर्व करना चाहिए क्यूंकि वो पल का सर्वश्रेस्थ परिणाम और उपयोग इंसान कर चूका होता है और जो आनेवाला कल है उसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए. क्यूंकि हर आनेवाला कल बिछड़े हुए कल से बेहतर होता है.
कल और आज : लेखक अग्यात
Reviewed by कहानीकार
on
September 05, 2017
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