गवाह
‘जो कहूंगा सच कहूंगा. सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा.’’ ‘गवाह’ शब्द सुनते ही दिमाग में गीता पर हाथ रख कर यह बोलते एक ऐसे व्यक्ति की तसवीर उभर आती है जिस के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ. वकीलों के कितने शब्दबाण वह झेल पाएगा, उसे इस का पता नहीं होता. गीता जिस पर हाथ रख कर वह सच बोलने की कसम खाता है, उस में क्या लिखा है, न कसम खाने वाले को पता है और न ही खिलाने वाले को. गवाह का इतिहास तो जजों और वकीलों से भी पुराना है. महाभारत के एक प्रसंग में गुरु द्रोण को पराजित करने के लिए कृष्ण को युधिष्ठिर की गवाही का सहारा लेना पड़ा. गवाही भी सच्ची मगर चालाकी से दिलवाई गई. उस वक्त रामजेठमलानी या अरुण जेटली जैसे वकील तो थे नहीं. सो कृष्ण ने उलझा दिया गुरु द्रोण को छलकपट के जाल में और निकाल लिया अपना मतलब.
अब जम्मू में नैशनल कांफ्रैंस के नेता मोहम्मद यूसुफ की मौत को ले कर चश्मदीद गवाह अब्दुल सलाम ने टैलीविजन चैनलों में ऐसी बात बोली कि इस में जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उन के पिता डा. फारूख अब्दुला शक के घेरे में आ गए. अब अब्दुल सलाम कितना सच और कितना झूठ बोल रहे हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा.
गवाहों की उपयोगिता सिर्फ अदालतों तक ही सीमित नहीं है. जिंदगी के हर लमहे में इस की जरूरत पड़ती है. अपनी जान बचाने के लिए सफाई देनी हो और मौके पर गवाह न मिले तो ‘खुदा गवाह’ है. यकीन मानो या न मानो पर मेरा भगवान जानता है या ईश्वर सब देख रहा है. भला बिना गवाह के गुजारा है कहीं?
कभीकभी तो जान बचाने के लिए एकदूसरे की गवाही का सहारा भी लेना पड़ता है. एक दिन बीवी ने बाजार से सामान लाने के लिए मुझे भेज दिया. बाजार में मुझे एक पुराने मित्र मिल गए. हम गपशप कर पुरानी यादें ताजा करने लगे तो घंटों बीत गए. जेब में रखा फोन जब घनघनाने लगा तब ध्यान आया कि बाजार क्यों आए थे. फोन उठाया तो लगे बहाना बनाने. अपने दोस्त से झूठी गवाही दिलाई कि साहब की गाड़ी में पंक्चर हो गया था. तब कहीं जा कर जान बची.
मगर कभी आप ने गवाह की दुर्दशा के बारे में सोचा है. सच बोलो तो मुसीबत और न बोलो तो मुसीबत ही मुसीबत. अदालतों के जो फैसले आजकल अखबारों में आ रहे हैं उन्हें आप पढ़ें तो यही पता चलेगा कि मुख्य मुजरिम के बारे में कम और गवाहों के बारे में ज्यादा कुछ लिखा गया है. एक मामले में तो 32 गवाह मुकर गए. अदालत अब उन के खिलाफ कार्यवाही करेगी. ऐसे मामले में 4 साल तक सजा होने का प्रावधान है. यह अनुमान लगाना गवाहों की अवमानना होगी कि वे या तो गांधीछाप नोटों की ललक में या फिर भाई लोगों की धमकी के डर से मुकर गए. कुछ भी हो, रसूखदार लोग धन, बल और दल से मामला अपने पक्ष में करने की कोशिश तो करते ही हैं. चाहे सीधेसीधे गवाहों को धमकी देने से बात बने या फिर सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर गवाहों को तंग करने से बने. कुछ गवाह तो सीधे मुकर जाते हैं मगर कुछ लोग मैदान में डटे रहते हैं और एकएक कर किस्तों में मुकरते हैं.
आप गवाह हैं. आप के सामने बोली और गोली की शर्त हो तो जान बचाने के लिए आप बोली को चुनना पसंद करेंगे. पुलिस के सामने सच बोल दिया था. जज के सामने झूठ बोलने में क्या हर्ज है? गवाहों की सुरक्षा के बारे में सरकार क्या कर रही है? यह ऐसा सवाल है जो गवाहों को डगमगाने पर मजबूर कर देता है. अदालत में सच का झंडा बुलंद करने वाले गवाहों को जब सफेदपोश बाहुबली डिगा नहीं पाते तो वे सरकारी तंत्र का सहारा ले कर उन की रोजीरोटी पर प्रहार करते हैं. जेसिका लाल के मामले में उस बार को सील करवा दिया गया. उस पर कई तरह की धाराएं लगवा दी गईं. जेसिका लाल के हत्यारों को तो सजा मिल गईं. वे कम से कम सलाखों के पीछे आराम से तो हैं.
अदालत में न्याय मांगने वालों में एक को न्याय मिलता है तो दूसरा मायूस हो जाता है. मगर गवाह को क्या मिलता है? कुछ गवाह अदालत जाने के बदले पाते हैं मौत जैसी बदतर जिंदगी तो कुछ अदालत परिसर के बाहर ही मार दिए जाते हैं. जिन गवाहों का संबंध सेलिब्रिटी मामलों से जुड़ा होता है वे अखबारों में छप जाते हैं. कुछ गवाह तनाव में अपनी ही मौत मर जाते हैं जिन का सिर्फ मृत्यु प्रमाणपत्र ही अदालत के लिए काफी है.
विदेशों में गवाह की सुरक्षा के लिए खासा इंतजाम किया जाता है. यहां तक कि उन का नाम, उन की पहचान और काम का स्थान तक गोपनीय रखा जाता है. मगर भारत में गवाह को उस के हाल पर छोड़ दिया जाता है. चर्चित मामलों में मीडिया गवाहों की इतनी पब्लिसिटी कर देती है कि उस के नाम की ‘सुपारी’ देने वाले को गवाह की फोटो देने की भी जरूरत नहीं उठानी पड़ती. ऐसी स्थिति में भला कोई जाहिरा शेख क्यों न बन जाए? जाहिरा सही बयान देती तो न जाने कितनों को फांसी होती. फिर धर्म के ठेकेदार जनून में बलवा करते. फिर लोग मारे जाते, इसी डर से या किसी और मजबूरी में उसे सच से मुकरना पड़ा.
गवाही किस के खिलाफ दें और किसे बचाने के लिए दें? एक तरफ दोस्त की मौत का गम तो दूसरी ओर भाई के जीवन की चाहत और पिता की प्रतिष्ठा. भारती यादव करे तो क्या करे? कुछ सच, कुछ झूठ बोल कर काम चलाने में ही समझदारी है. मतलब सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. गवाह सच बोले तो खाई और झूठ बोले तो कुआं.
गवाह
Reviewed by कहानीकार
on
September 18, 2017
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