तेरी मेरी कहानी : लेखक नारायण गौरव
“फिर क्या ? मैने देखा, तुम्हारे घरवाले बिरला मंदिर के उस गार्डन में दरी बिछाकर बैठे हैं । मैं तो बस यह सोच रहा था कि उनमें वह लड़की कौन सी है जिसे मैं देखने आया हूं ।“
“तो क्या देखा तुमने ?“ -आवाज में उत्सुकता थी ।
“देखा कि जो बैठे थे, वे या तो औरते थीं या फिर आदमी । उनमें कोई लड़की नही थी ।“
“फिर ?“
“फिर देखा कि वहीं पास ही एक लड़की खड़ी है उसके साथ एक लड़का भी है । वह तुम थी, निस्संदेह वह तुम ही थी । हालांकि उस समय मुझे नही पता था कि वह तुम थी पर मेरा अंदाजा था कि वह तुम ही थी । और देखो मेरा अंदाजा कितना सही था । वह तुम ही थी ।“
“अच्छा तो वो मैं थी । पर वह लड़का कौन था जो मेरे साथ था ?“ -आवाज में उत्सुकता भी थी और हंसी भी ।
“तुम भी न । मजे ले रही हो ।“ -आवाज में इरीटेशन थी ।
“बताओ न प्लीज । टालो मत । वह लड़का कौन था ?“
“अरे बाबा वह तुम्हारा भाई था । और कौन हो सकता था । घरवाले साथ थे तुम्हारे । आॅब्वियस है वह तुम्हारा भाई ही हो सकता था, ब्वाॅयफ्रेंड नहीं ।“
“अच्छा तो फिर । फिर क्या हुआ जब तुमने उस लड़की को देखा यानि मुझे देखा तो क्या फील हुआ ? क्या सोचा तुमने ?“ -आवाज में उत्सुकता और उत्साह दोनों था । ज्यादा क्या था, कहा नही जा सकता ।
“इतनी दूर से शक्ल साफ दिखाई नही दे रही थी तुम्हारी । लेकिन इतना कह सकता हूं कि दिल की धड़कनें जरूर बढ़ गईं थी ।“
“तुम्हारी ?“
“कम आॅन यार मेरी ही । यहां मेरी ही बात हो रही है न ?“
“मतलब बिना मेरी शक्ल देखे ही दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी तुम्हारी ? कमाल है ।“ -आवाज में आश्चर्य घुला था, आत्मप्रशंसा का भाव भी महसूस किया जा सकता था ।
“अरे यार ! इससे पहले ऐसी कोई सिचुएशन फेस नही की थी मैनें । तुम्हें तो पता है कि कितना ऐम्बेरेंसिंग फील होता है ऐसे में ।“
“क्यों ? मैं क्या इस विषय की ऐक्सपर्ट थी । मेरे लिए भी वह पहला ही मौका था ।“
“अच्छा तो तुम्हें सब याद है । फिर मुझसे क्यों सुन रही हो ।“ -आवाज में पीछा छुड़ाने का मकसद था ।
“नहीं नहीं मुझे कुछ याद नहीं । वो तो मैनें बस ऐसे ही कह दिया, तुम्हे कंपनी देने को । आगे बताओ फिर क्या हुआ ? धड़कनें बढ़ गईं थी तुम्हारी....फिर ?“
“फिर मैं और मम्मी-पापा आगे बढ़े । उस जगह पहुंचे जिस जगह तुम लोग रेडकारपेट बिछा कर बैठे थे अपने होने वाले दामाद के लिए ।“
“लिसन ! ये “तुम-लोगो“ं जिन्हें तुम कह रहे हो, उनमें मैं नही थी, याद रखना ।“ -आवाज में ऐटीट्यूड था ।
“आइ नो यार । यह पहली बार नही है और यह आखिरी बार भी नही है, जब तुम यह कह रही हो । पर याद रखो अब अगर तुम गजनी के आमिर खान के अवतार से बाहर आई तो मैं हमारी यह गाथा यहीं समाप्त कर दूंगा ।“
“अच्छा साॅरी...साॅरी, मुझे कुछ याद नही । यू कन्टीन्यू । पर कोशिश करो कि अपने आप को ज्यादा सुपरस्टार की तरह पेश न करो ।“ -आवाज में सलाह कम, आदेश ज्यादा था ।
“अब अगर स्टोरी टैलर मैं हूं तो इतनी फ्रीडम तो मुझे मिलनी ही चाहिए ।“ -आवाज में डिमांड थी, अपने हक के लिए ।
“देखो ऐसा है श्रीमानजी, स्टोरी टैलर होने का यह मतलब कतई नही कि तुम पात्रों के साथ न्याय न कर पाओ । कैरेक्टर को कैरेक्टर ही रहने दो, उसे स्टार मत बनाओ । वरना वह स्क्रिप्ट पर हावी हो जाएगा और कहानी डूब जाएगी ।“ -इस बार आवाज में सलाह तो थी ही मगर कुछ पूर्वाग्रह भी था ।
“लेकिन यदि कैरेक्टर कहानी का हीरो है तो उसे हीरो तो बनाना ही होगा न । किसी छुछुन्दर की तरह थोड़े ही न पेश कर दूंगा ।“
“मैने कहा स्टार मत बनाओ । अच्छा छोड़ो, पकाओ मत-आगे कहो, फिर क्या हुआ ?“ -आवाज में थोड़ा चिड़चिड़ापन था ।
“मम्मी, पापा और मैं, ठीक तुम्हारे मम्मी, पापा और तुम्हारे एक-दो रिलेटिव्स के सामने बैठ गए । मेरे ठीक सामने तुम्हारी मम्मी थीं और जब तुम्हें भी उस दरी पर बैठने को कहा गया तो तुम्हारे ठीक सामने मेरे पापा थे ।“
“अच्छा जी ! तुम्हें ये भी याद है ।“ -आवाज मंे उत्साह और आश्चर्य था, बराबर-बराबर ।
“हां याद है क्योंकि वही वो लम्हा था जब मैनें पहली बार तुम्हें देखा था इतने करीब से ।“
“करीब से मतलब । दूर से कितनी बार देखा तुमने मुझे ?“ -आवाज मंे शरारत थी ।
“एक बार, सिर्फ एक बार देखा था दूर से तुम्हें, और वो भी वहीं पर, उसी दिन, उसी पल । अभी बताया न । लगता है कहानी में ध्यान नही है तुम्हारा, यहीं रोक दूं क्या ?“
“धमकी दे रहे हो ? रेट हाइ कर रहे हो ? घूसा पड़ेगा नाक पर । कन्टीन्यू करो जल्दी ।“ -आवाज में धमकी तो थी पर अपनापन कहीं ज्यादा था ।
“तो कहां था मैं ? तुम भी न रिदम ब्रेक कर देती हो । हां जब मैनें पहली बार तुम्हें करीब से देखा था ।“
“हम्ममम...।“
“तो जब मैनें तुम्हे करीब से देखा, पहली बार करीब से देखा, मेरी बढ़ी हुई धड़कनें एकदम से थम गईं, बी.पी. अचानक से लो हो गया ।“
“क्यों ? क्या इतनी खूबसूरत लगी मैं ? विश्वास नही हो रहा था अपनी किस्मत पर ?“
“अरे नहीं रे । लगा, जिसका डर था, वही हुआ । अब इस लड़की के लिए मना करना पड़ेगा । इसी स्थिति से बचने के लिए लड़की देखने नही आना चाह रहा था मैं, लेकिन...“
“...लेकिन क्या ?“ -आवाज ने आवाज को बीच में ही टोका, आवाज में सख्ती थी ।
“....लेकिन घरवालों का प्रैशर इतना बढ़ चुका था कि आना पड़ा ।“
“हां तो कोई एहसान नही किया था, आकर । मैं भी कोई मरी नहीं जा रही थी, तुम्हें देखने आने को । वो तो मेरे घरवाले ही थे जो खामखां भावुक हुए जा रहे थे ।“
“यहां बात तुम्हारी नही, मेरी हो रही है । जिस दिन तुम कहानी सुनाओगी, उस दिन बताना ये सब ।“
“तुम इस तरह मेरी इंसल्ट नही कर सकते ।“ -आवाज में रोष था ।
“मैं कोई इंसल्ट नही कर रहा, बल्कि तुम कहानी को बीच में रोककर, कहानी की इंसल्ट कर रही हो । मुझे अपनी बात पूरी तो करने दो । लैट मी फिनिश डियर ।“ -आवाज में रोष और आग्रह दोनों था ।
“ओके डू इट, बट फास्ट“ -आवाज में आदेश था, सिर्फ आदेश, भाव नहीं ।
“हां तो इससे पहले कि मेरी धड़कनें सामान्य हो पातीं और बीपी नाॅर्मल । मेरे पापा की आवाज गूंजी, जो कि तुमसे ही मुखातिब थी । उन्होनें पूछा-क्या तुम शादी के बाद भी जाॅब करना चाहोगी ?“ -यह कहकर आवाज एक पल को शांत हो गई ।
“क्या हो गया ? चुप क्यों हो गए ? अब तो मैं तुम्हें बीच में नही टोक रही । बताओ फिर मैने क्या जवाब दिया ?“
“हम्ममम....फिर तुमने जवाब दिया ।“
“क्या जवाब दिया ?“ - आवाज में उत्सुकता थी, लेकिन बनावटी ।
“तुमने जवाब दिया- बिल्कुल ! जाॅब तो मैं कन्टीन्यू करूंगी । तुम्हारा यह जवाब सुनकर मेरी धड़कनें वापस सामान्य और बीपी नाॅर्मल हो गया ।“
“क्यों इतने डैस्परेट थे जाॅबवाली बीवी के लिए ?“
“नहीं ऐसा नही है, तुम जानती हो । बात तुम्हारे जवाब की नही थी । तुम्हारी आवाज और तुम्हारे अंदाज की थी ।“ -यह कहकर आवाज कुछ थम सी गई ।
“अच्छा जी । मेरी आवाज और मेरे अंदाज की थी ! क्या बात है । ऐसा क्या था मेरी आवाज और मेरे अंदाज में ?“ -प्रश्नसूचक आवाज में हंसी, खुशी, शर्म और उत्साह चारों घुले थे ।
“आत्मविश्वास । गजब का आत्मविश्वास था तुम्हारी आवाज में । मेरे कानों के पर्दों से जब पहली बार तुम्हारी आवाज टकराई तो पर्दे तरंगित हो गए । मन में घंटियां बज उठीं । मेरी ये छोटी-छोटी आंखें उल्लू की आंखों की तरह बड़ी-बड़ी होकर तुम्हें निहारने लगीं । मेरा रोम-रोम झंकृत और अंग-अंग पुलकित हो गया ।“
“मतलब मेरे एक वाक्य ने तुम्हें इतना दीवाना कर दिया ?“
“ शायद हां । पर वह केवल एक वाक्य नहीं था, उसके बाद प्रश्न दर प्रश्न तुम पापा के सवालों का जवाब देती चली गई और मैं तुम्हारी आवाज, तुम्हारे बेधड़क, बेखौफ अंदाज के सागर में डूबता चला गया ।“
“क्या बात है, क्या कहने । इस सीन को जरा लंबा खींचना, मजा आ रहा है ।“ -आवाज में उत्साह और आत्मविश्वास दोनों था पर दूसरे तत्व का समावेश ज्यादा था ।
“हां वो तो आएगा ही । तारीफें जो मिल रही हैं थोक में । खैर ! तुम जवाब देती गई और मैं तुम्हारा दीवाना होता गया । अब तुम मुझे सुंदर लग रही थी । मेरा तुम में इंस्ट्रस्ट जाग गया था ।“
“अब सुंदर लग रही थी ! मतलब क्या है तुम्हारा ? खुद की शक्ल देखी थी, घोंचू लगते थे एकदम । वो तो मैने बना दिया तुम्हें हैंडसम हंक ।“
“हा..हा..हा । वो तो मैं लगता था । मानता हूं । पर जहां तक तुम्हारी बात है, ऐसा नही है कि जब तक तुम चुप थी, तुम सुंदर नहीं थी । लेकिन किसी को केवल उसके फिजीकल अपीयरेंस से जज करना मुझे न तब आता था और न अब आता है । मगर जब तुमने बोलना शुरु किया तो तुम्हारी रियल पर्सेनैलिटी निकलकर सामने आई, जिसने मुझे तुम्हारा दीवाना बना दिया ।“
“ज्यादा इंटलैक्चुअल मत बनो । तुमने कहा कि मुझे करीब से देखते ही तुम्हें लगा कि अब इस लड़की के लिए मना करना पड़ेगा । तो क्या यह जजमैंट नही था, बिना किसी को जाने । -आवाज में तर्क था, वह भी जोरदार ।“
“पकड़ लिया । तुमने पकड़ लिया मुझे । हां ऐसा मैने सोचा था पर इसके आगे मैनें फुलस्टाॅप नही लगाया था । समझदार व्यक्ति वही है जो विकल्प खुले रखे । हा...हा...हा।“
“इट्स नाॅट फनी । पर चलो छोड़ो, मैं इसे ज्यादा तूल नही देना चाहती, आगे बताओ, फिर क्या हुआ ?“
“हां तूल क्यों दोगी ? तुम्हारी तारीफों का चैप्टर जो चल रहा है । ऐनीवेज ! जब पापा के साथ तुम्हारी बातचीत का दौर खत्म हुआ, जिसके खत्म होने का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था ताकि अपना दौर शुरु हो सके, तो पता नही तुम्हारे यहां से किसने कहा-तुम दोनों यानि हम दोनों चाहें तो आपस में बात कर सकते हैं सैपरेटली । जहां मेरे मुंह से फौरन हां निकली, तुमने सिर्फ कंधे उचका दिए ।“
“यह साबित करता है कि तुमसे बात करने को मैं कोई मरी नही जा रही थी ।“
“भले ही करता हो । लेकिन तुम्हारी उन दोनों कंधों पर एक-एक हां को मैनें टप्पा खाते देखा था ।“ -आवाज में हंसी और वाक्पटुता दोनों थी ।
“दिल बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है । आगे कहो फिर क्या हुआ ?“
“फिर जो हुआ, वह इतिहास है । ऐसा इतिहास जिसने पूरा युग बदल दिया मेरे जीवन का, हमारे जीवन का ।“
“डायलाॅग मत मारो । आगे बताओ क्या हुआ ?“
“हम दोनों उठे और वहीं थोड़ी दूर बिरला मंदिर के उस गार्डन में कुछ कदम आगे बढ़े । मैं समझ नही पा रहा था, कहां से शुरु करुं ? क्या बात करुं ? लेकिन तुम्हें शायद मुझसे ज्यादा जल्दी थी और तुमने ही पहले बात शुरु की और पूछा- आपका नाम उदय है या भास्कर ?“
“ शटअप ! मुझे कोई जल्दी नही थी । मैं तो बस तुम्हारी मुश्किल आसान कर रही थी । और यह तुम्हारा नाम मुझे शुरु से ही अपसैट कर रहा था । लगता था कोई साइंटिस्ट टाइप बंदा होगा नाक पर मोटा सा चश्मा चढ़ाए ।“
“हाहाहा। अच्छा आगे सुनो । मैनें जवाब दिया कि ये दोनों नाम मेरे ही हैं । एक पापा ने रखा था और एक दादाजी ने क्योंकि मैं सुबह-सुबह पैदा हुआ था सूर्योदय के समय । इसलिए दोनों के काॅम्बिनेशन से घर के दो दिग्गजों ने मिलकर मेरे इस नाम की रचना की थी।“
“वाह वाह तुम्हारे तो नामकरण के पीछे भी एक कहानी है । क्या बात है उदय भास्कर जी ।“
“बिल्कुल । मगर एक बात नोटिस की तुमने कि हम दोनों के रिश्ते की शुरुआत भी एक कहानी से ही हुई थी । मेरे नाम की कहानी से । कमाल है न । और तब से मैं तुम्हें कहानियां ही सुना रहा हूं । लगता है कहानी सुनने का चस्का तुम्हें पहले दिन से ही लग गया था ।“
“कह तो तुम सही रहे हो । हालांकि तुम्हारी ये बात पूरी तरह सही नही है । मुझे सिर्फ हमारी कहानियां सुनने का ही शौक है, किसी और की नही । क्यों है ? ये तुम अच्छी तरह जानते हो ।“ -आवाज में व्यंग्य घुला था ।
“देखो मैं सुना रहा हूं न । मुझे सुनाने दो । अगर मैं पटरी से उतरा तो पता नही कहां जाकर लगूंगा । कहानी सुनो और ऐन्जाॅय करो । अपने सारकाज्म की पिन से मेरे मूड के टायर का पंचर मत करो जो अभी सरपट दौड़ रहा है ।“ -आवाज में ऐटीट्यूड था ।
“ठीक है बको । सुन रही हूं मैं ।“ -ऐटीट्यूड तो इस आवाज में भी था पर पहले वाली से थोड़ा कम ।
“अपने नाम से जुड़ी तुम्हारी जिज्ञासा शांत करने के बाद, मैनें तुमसे पूछा- आपकी हाॅबीस क्या क्या हैं । और तुमने जवाब दिया- बोलना । लगातार बोलना । हर वक्त चकर-चकर करना ।“
“चकर-चकर करना । झूठे ! ऐसा मैने कब कहा ?“
“तुम्हारा मतलब वही था ।“
“मतलब में और सच में कहने में अंतर होता है । आप तो विद्वानों के खानदान से हो उदय भास्कर जी आपको यह अंतर पता होना चाहिए ।“ -आवाज में ठहराव था और ठहराव में अघोषित व्यंग्य ।
“विद्वानों का खानदान हुआ करता था । पर अब ऐसा नही है ।“
“क्यों अब क्या हो गया ?“
“अब विद्वानों का स्थान विदुषियों ने ले लिया है । हर वक्त चकर-चकर करने वाली विदुषियों ने ।“
“लगता है जान प्यारी नही है आपको । -आवाज में धमकी थी, कोरी धमकी ।“
“जान से ज्यादा, जान लेनेवाली प्यारी है ।“
“अब आए न रास्ते पर । आगे बढ़ो, कहानी पूरी करो ।“
“हां तो तुमने कहा कि तुम्हें बोलना बहुत पसंद है । फिर तुमने मुझसे पूछा कि मुझे क्या पसंद है ? और मैने कहा मुझे चुप रहना । तब तुमने छूटते ही कहा था-तो चलो फिर शादी कर लेते हैं ।“
“एक और झूठ । मैने ऐसा कब कहा कि चलो शादी कर लेते हैं ।“
“हां तुमने ऐक्सैक्टली यह नही कहा था पर तुम बोली कि अच्छा है न अगर एक ज्यादा बोलता है तो दूसरा चुप रहनेवाला होना चाहिए । अगर दोनों ही बोलेंगे तो फिर सुनेगा कौन ? इसका क्या मतलब था ? यही कि तुम मेरे साथ अपनी गृहस्थी बसाने का मन बना चुकी थी ।“
“कितनी खुशफहमियां पाल रखी थीं न तुमने । मेरा ऐसा कोई इरादा नही था महाशय । -आवाज में हंसी थी ।“
“वो तो तुम्हारी यह हंसी ही बता रही है कि तुम्हारा इरादा था या नहीं ।“
“आगे कहो, फिर क्या हुआ ?“
“फिर हम बातें करने लगे । फिल्म की, क्रिकेट की, काॅलेज की, इधर की, उधर की । लगा ही नही कि यह हमारी पहली मुलाकात है ।“
“सही कह रहे हो । लगा ही नही कि यह हमारी पहली मुलाकात थी । तुम्हें याद है हम इतनी देर तक बातें करते रहे कि मम्मी को आकर कहना पड़ा कि-बस करो । अब आ भी जाओ । कुछ बाद के लिए भी छोड़ देना और हमने दो बार उन्हें वापस लौटा दिया । और फिर तुम्हारे पापा ने जब थोड़ी सख्ती से बुलाया तब ही गए थे हम दोनों वापस अपने घरवालों के पास ।“ -आवाज में अतीत की स्मृतियों के प्रति गजब की भावुकता टपक रही थी ।
“सही कह रही हो । क्या दिन था वो । मेरी जिंदगी का सबसे शानदार दिन । और वही क्यों उसके बाद का प्रत्येक दिन जो तुम्हारे साथ डेट करते हुए बिताया शादी से पहले । ये सामनेवाला पेड़ देख रही हो, जो हवा से झूम रहा है । ये आसमान में चमकनेवाले तारे, ये चांद, ये सब इस बात के गवाह हैं कि इस छत पर मैने पूरी पूरी रात बिताई है, तुमसे फोन पर बात करते हुए ।“
“...और अब जबकि मैं तुम्हारे पास हंू तुम मुझे छोड़ इस फोन में ही घुसे रहते हो । तभी तो मुझे सुननी पड़ती हैं हमारी ये कहानियां उन पलों की जिसमें बस तुम थे, मैं थी और हमारे बीच ढेर सारा प्यार ।“
“ऐसा मत कहो । इस फोन में घुसा रहता हूं तो इसलिए कि मेरी जिंदगी में तुम हो । यह संतोष ही मुझे इस फोन जैसी आर्टिफिशल चीजों के इस्तेमाल के योग्य बना पाता है । अगर तुम नही तो कुछ नहीं । मेरी ये बांहें जिनमें आज तुम हो, अगर ये खाली हों, तो मैं भी खाली हूं । फिर इस संसार की किसी चीज का कोई महत्व नहीं । तुम जानती हो, मुझे इंतजार रहता है उस पल का जब तुम हमारी कहानी सुनने की जिद करती हो । बस तुम यूंही मेरी इन बांहों में, मेरे जीवन में बनी रहना और मैं भी यूंही ये कहानियां तुम्हें सुनाता रहूंगा हमारे अतीत के उन चमकीले पलों की जो हमारे जीवन को प्रेम की रोशनी से भर देते हैं ।“
“तुम्हारी इन्ही बातों ने तो मुझे आज तक तुम्हारी इन बांहों में रोककर रखा है। मुझे इनमें समेट लो भास्कर ! जब तक कि मैं पूरी तरह पिघल न जाऊं ।“
और उस चांदनी रात में इस अंतिम वाक्य के साथ ही वे दोनों आवाजें शांत होती चली गईं । अपने अतीत का, सुनहरे अतीत का अवलोकन करते करते वे दोनों आवाजें प्रेम की चांदनी में पूरी तरह डूबती चली गईं, अपनी खुद की कभी खत्म न होने वाले कहानी को कुछ समय के लिए विराम देकर ।
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तेरी मेरी कहानी : लेखक नारायण गौरव
Reviewed by कहानीकार
on
September 06, 2017
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